शब्द और पद में अंतर | Shabd aur Pad men Antar | Shabd aur Pad men Kya Antar hai


शब्द (Word) और पद (Phrase) में क्या अंतर है?

शब्द और पद में अंतर 

  Shabd aur Pad men Antar 



सामान्य बोलचाल में शब्द और पद को एक ही मान लिया जाता है । परंतु जब हम भाषाविज्ञान की दृष्टि से दोनों का अध्ययन करते हैं तो दोनों के बीच का अंतर पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है । शब्द और पद में अंतर (shabd aur pad men antar) को भली-भाँति समझने के लिए हमें इनका पृथक्-पृथक् अध्ययन करना पड़ेगा । अब हम शब्द और पद दोनों का पृथक्-पृथक् अध्ययन करेंगे ।

 


    शब्द (word)


    भोलानाथ तिवारी के अनुसार - भाषा की सार्थक, लघुतम और स्वतंत्र इकाई शब्द है।
        भाषा में वाक्य होते हैं और वाक्य शब्दों से बनते हैं । इस तरह शब्द भाषा की एक इकाई है । प्रत्येक शब्द का कोई-न-कोई अर्थ होता है ।

        बोलते समय हम अपनी भाषा में अनेक प्रकार के शब्दों का प्रयोग करते हैं। इन शब्दों का भाषा में विशेष महत्व है। इस प्रकार, निश्चित अर्थ को प्रकट करने वाले वर्ण-समूह को शब्द कहते हैं।

        विचारों को व्यक्त करने में ये शब्द सहायक होते हैं। जिसके पास जितने अधिक शब्दों का भंडार होता है, यह उतना ही अच्छा बोल और लिख सकता है।

        भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है। वर्णों को मिलाने से शब्द बनते हैं। वर्णों को समान्यतः अक्षर भी कहा जाता है । वर्ण दो प्रकार के होते हैं : स्वर और व्यंजन ।

        शब्द भाषा की स्वतंत्र और अर्थवान इकाई है। यह माना जाता है शब्द और अर्थ में शाश्वत (नित्य, अविनाशी) संबंध होता है। वास्तव में शब्द सार्थक होते हैं और भाषा-विशेष के वर्णों के विशिष्ट क्रम से बनते हैं। वे वस्तु, विचार या भाव को अभिव्यक्त करते हैं।

    अतः शब्द के बारे में निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है:

    भाषा में शब्द का विशिष्ट स्थान है।

    शब्द भाषा की स्वतंत्र एवं अर्थवान इकाई है।

    शब्द और अर्थ में नित्य का संबंध माना जाता है।

    शब्द सार्थक होते हैं। प्रत्येक शब्द का अपना अर्थ होता है।

    शब्द वणों के मेल और विशिष्ट क्रम से बनते हैं।

    शब्द विचार, भाव तथा वस्तु को अभिव्यक्त करते हैं।

    शब्द स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होते हैं और स्वतंत्र रहकर अपना अर्थ प्रकट करते हैं।

    शब्द का स्वरूप :

     इस प्रकार शब्द के स्वरूप के विषय में हम कह सकते हैं :

    1. शब्द भाषा की स्वतंत्र इकाई है:  इसका तात्पर्य यह है कि शब्दों का प्रयोग भाषा में स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है।

        उदाहरण के लिए कुरसी, तोता, लड़का, मेज़, कलम, घोड़ा आदि सभी शब्द हैं।
        शब्दों के स्वतंत्र होने के कारण ही इनको कोश में स्थान दिया गया है और इनके अर्थ कोश में देखे जा सकते हैं।

        वाक्य में प्रयुक्त होने पर इन शब्दों का स्वतंत्र अस्तित्व न रहकर वाक्य के लिंग, वचन, कारक और क्रिया के नियमों से प्रभावित होता है। शब्द वाक्य में प्रयुक्त होकर पद बन जाते हैं ।

    2. शब्द भाषा की सार्थक इकाई है:  केवल अर्थवान और सार्थक इकाइयाँ ही शब्द कहलाती हैं।

        उदाहरण के लिए कलमतथा कमलदो हिंदी के शब्द हैं, क्योंकि ये दोनों शब्द सार्थक हैं, पर मकलया लकमशब्द नहीं हैं क्योंकि ये सार्थक और अर्थवान नहीं हैं।

    3. शब्द का महत्व: विचारों, भावों आदि की अभिव्यक्ति का सबसे प्रमुख साधन भाषा है। भाषा की अभिव्यक्ति के मूल में शब्दहोते हैं, क्योंकि शब्द ही बातचीत या कथ्य में आने वाले व्यक्तियों, प्राणियों, वस्तुओं, गुणों, क्रियाओं आदि को प्रकट करते हैं और वाक्य बनाते हैं। कई बार हम उचित शब्द न मिल पाने के कारण बीच में ही रुक जाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि शब्दका भाषा में कितना अधिक महत्व है।

    शब्दों का वर्गीकरण:

    शब्दों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है-

    1. उत्पत्ति, स्रोत या इतिहास के आधार पर (चार प्रकार): तत्सम शब्द, तद्भव शब्द, देशी/देशज शब्द, आगत (विदेशी) शब्द

    2. रचना अथवा बनावट के आधार पर (तीन प्रकार) : रूढ़ शब्द, यौगिक शब्द, योगरूढ़ शब्द

    3. रूप या प्रयोग के आधार पर (दो प्रकार): (क) विकारी शब्द: संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया
    (ख) अविकारी शब्द : क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक (योजक), विस्मयादि बोधक ।

    4. अर्थ के आधार पर: (क) एकार्थी शब्द (ख) अनेकार्थी शब्द
    (ग) समानार्थी या पर्यायवाची शब्द (घ) विपरीथार्थी या विलोम

    पद (Phrase)


        रूप और पद समानार्थी शब्द हैं। पद शब्द पर आधारित होता है। सामान्य रूप से शब्द और पद को एकार्थक समझ लिया जाता है जो व्याकरणिक एवं भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से पूर्णतया गलत है । वाक्य में पद का प्रयोग होता है, शब्दों का नहीं।

        शब्दों को एकत्र कर देने से वाक्य का निर्माण नहीं हो सकता । जब तक कोई शब्द पद नहीं बन जाता, तब तक उसका प्रयोग वाक्य में नहीं हो सकता।

    संबंध तत्त्व और अर्थ तत्त्व : वाक्य का विश्लेषण करने पर हम देखते हैं कि उसमें दो तत्त्वों का समावेश होता है – 1. संबंध तत्त्व, 2. अर्थ तत्त्व ।

        अर्थ तत्त्व का अर्थ है शब्दों द्वारा अर्थ की अभिव्यक्ति तथा संबंध तत्त्व इन शब्दों के संबंध को दर्शाता है ।

        उदाहरण के लिए एक वाक्य लिया जा सकता है  - राम ने रावण को बाण से मारा ।

        इस वाक्य में चार अर्थ तत्त्व हैं – राम, रावण, बाण और मारना। वाक्य बनाने के लिए चारों अर्थ तत्त्वों में संबंध तत्त्वों कि आवश्यकता पड़ेगी, अतः यहाँ चार संबंध तत्त्व भी हैं। ने संबंध तत्त्व वाक्य में राम का संबंध दिखलता है और इसी प्रकार को और से क्रमश: रावण और बाण का संबंध दिखलाता है । मारना से मारा पद बनाने में संबंध तत्त्व इसी में मिल गया है ।

        मूल शब्द (प्रातिपदिक) में जब संबंध तत्त्व जुड़ जाते हैं तो उसे पद कहते हैं । इस प्रकार कहा जा सकता है कि –

    मूल शब्द + संबंध तत्त्व = पद

    नोट : कारक चिन्ह अर्थात् विभक्तियाँ संबंध तत्त्व कहलाती हैं ।

        उदाहरण के लिए – श्याम ने मुझे पुस्तक दी। यहाँ ने और (मुझे = मुझ को) संबंध दर्शाने वाले तत्त्व हैं ।

        शब्द भाषा की स्वतंत्र और अर्थवान इकाई है। अब हम शब्द और पद का अंतर समझेंगे।

        शब्द जब स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होता है और वाक्य के बाहर होता है तब तक यह शब्द रहता है, किंतु जब शब्द वाक्य के अंग के रूप में प्रयुक्त होता है, तब यह पद कहलाता है।

        जैसे लड़का एक शब्द है, इस शब्द का वाक्य में प्रयोग विभिन्न रूपों में होता है; जैसे-
    (क) लड़का खाना खाता है।
    (ख) लड़के ने खाना खाया।
    (ग) लड़कों को खाना खाने दो।

    उपर्युक्त वाक्यों में लड़का, लड़के, लड़कों रूप अपने आप में स्वतंत्र नहीं है। लड़काशब्द के ये अलग-अलग रूप हैं। ये ही रूप पदकहलाते हैं।

    पद का स्वरूप :


    इस प्रकार पद के स्वरूप के विषय में हम कह सकते हैं :

    1. पद के अंतर्गत शब्द में अर्थ-तत्त्व एवं संबंध-तत्त्व का योग होता है।

    2. जहाँ संबंध तत्त्व स्पष्ट न हों अथवा दिखाई न पड़े, वहाँ पद में शून्य संबंध-तत्त्व होता है ।

    3. वाक्य में शब्द/शब्दों का नहीं पद/पदों का प्रयोग होता है।

    4. वाक्य-विश्लेषण का मुख्य आधार पद होता है ।

    5. प्रत्येक भाषा के पद (रूप) भिन्न-भिन्न होते हैं ।

    6. पदों की व्याकरणिक कोटि के अंतर्गत गणना होती है ।
     
     
     

    शब्द और पद में अंतर 


    वाक्य में प्रयुक्त शब्द पदकहलाता है।

     जैसे :  घर’, ‘विहान’, ‘है’, ‘जाता’- ये शब्द हैं। जब ये शब्द कारक चिन्हों अर्थात् विभक्तियों के सहयोग से वाक्य में प्रयुक्त होते हैं जैसे- विहान’ ‘घर’ ‘जाता है’- ये सभी शब्द पद बन जाते हैं।

    एक अन्य उदाहरण द्वारा शब्द और पद के अंतर को समझें-

    पक्षी’, ‘आकाश’, ‘उड़ना’- ये तीन स्वतंत्र शब्द हैं। इनके मेल से बना वाक्य है-
    पक्षी आकाश में उड़ते हैं।
    अब इस वाक्य में प्रयुक्त तीनों शब्दों को पद कहा जाएगा।

    पद के प्रकार या भेद:


    निम्नलिखित वाक्य पढ़िए-

    (क) घोड़ा दौड़ता है।
    (ख) छोटा घोड़ा दौड़ता है।
    (ग) छोटे घोड़े पीछे-पोछे दौड़ते हैं।
    (घ) वह दौड़ता है।
    (ङ) वे तेज दौड़ते हैं।

    उपर्युक्त वाक्यों में :

    घोड़ा’, ‘घोड़े संज्ञा पद हैं।
    छोटा’, ‘छोटे विशेषण हैं।
    वह’, ‘वे सर्वनाम हैं।
    दौड़ता है’, ‘दौड़ते हैं’- क्रिया-पद हैं।
    पीछे-पीछे’, ‘तेज’- अव्यय हैं।

    इस प्रकार पद के पाँच प्रकार (भेद) हैं-

    1. संज्ञा
    2. सर्वनाम
    3. विशेषण
    4. क्रिया
    5. अव्यय (अविकारी शब्द) -(क) क्रिया-विशेषण, (ख) संबंधबोधक
                 (ग) समुच्चयबोधक (योजक), (घ) विस्मयादिबोधक

    निष्कर्ष


        निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शब्द और पद (या रूप) एक नहीं हैं, बल्कि दोनों एक दूसरे से पृथक्- पृथक् अस्तित्व रखते हैं। दोनों में प्रमुख अंतर इस प्रकार है :

    1. शब्द मूल अथवा प्रतिपादिक होता है जबकि पद शब्द और संबंधतत्त्व का योग होता है। संस्कृत में मूल शब्द को 'प्रतिपादिक' कहते हैं क्योंकि यह उस मूल शब्द से बनने वाले प्रति (प्रत्येक) पद में विद्यमान रहता है।

        मूल शब्द (प्रकृति या प्रतिपादिक) में जब प्रकृति-प्रत्यय जुड़ जाता है तो वह 'पद' बन जाता है। इसे निम्न रूप में देखें-

    शब्द - मूल शब्द (प्रकृति, धातु, प्रतिपादिक)
     
    पद - प्रकृति या प्रतिपादिक + प्रत्यय (विभक्ति)= पद
     
    2. वाक्य में पद अथवा पदों का प्रयोग होता है, शब्द या शब्दों का नहीं।

        जैसे कृष्ण, कंस, मारना ये तीन शब्द हैं किन्तु इनसे कोई अर्थ प्रकट नहीं होता। यदि हम कहें कि कृष्ण ने कंस को मारा तो अर्थ स्पष्ट हो जाता है।

        इस उदाहरण में नेऔर को संबंधतत्त्व (विभक्ति या प्रत्यय) हैं। इस प्रकार, मूल शब्द में जब विभक्ति या प्रत्यय जुड़ता है तब वह वाक्य में प्रयुक्त होने की क्षमता रखता है।
     
    3. ‘शब्द पद का आधार होता है जबकि पद शब्द का परिवर्तित अथवा विकसित रूप होता है।

        शब्द के बिना पदका अस्तित्व नहीं। शब्द पर ही पद आश्रित है। शब्द से जब पदका निर्माण होता है तब उसका रूप परिवर्तित हो जाता है।
     
    4. एक शब्द से प्रायः एक ही भाव प्रकट होता है जबकि एक मूल शब्द से अनेक पदों का निर्माण एवं भिन्न-भिन्न अर्थबोध हो सकता है। यथा- इसशब्द से इसने, इसको, इससे, इसके लिए, इसका, इसमें, इस पर इत्यादि अनेक पद बनते हैं एवं इनका अर्थबोध भी भिन्न-भिन्न होता है।
     
    5. शब्द पद से छोटी इकाई है जबकि पद शब्द से बड़ी इकाई है।
     
    शब्द - प्रत्यय-तत्त्व (विभक्ति) से रहित।
     
    पद - प्रत्यय-तत्त्व (विभक्ति) से युक्त।
     
    6. शब्दों का महत्त्व वर्णों के सार्थक समूह में होता है जबकि पदों का विशेष महत्त्व वाक्य-संरचना में होता है।

     
     
     
     

     
     

    कोई टिप्पणी नहीं

    Blogger द्वारा संचालित.