बिम्ब (Image) क्या है | Bimb Kya Hai | Kavya Bimb | Kavya Bimb Kise Kahate Hain

 

शाब्दिक दृष्टि से बिम्ब’ (image) का अर्थ है-प्रतिमा, आकृति रूप, चित्र आदि। मनोविज्ञान के अनुसार जब हम इन्द्रियों के माध्यम से स्थूल जगत् की विभिन्न वस्तुओं के सम्पर्क में आते हैं तो उनका प्रतिबिम्ब या चित्र हमारे मन में अंकित हो जाता है तथा ये प्रतिबिम्ब ही समय-समय पर हमारी वासना, संस्कार, स्मृति, भावना आदि को जागृत करने का कार्य करते हैं।

    ये बिम्ब एक प्रकार से संचित अनुभूतियों के रूप में हमारे अवचेतन मन (subconscious mind) में सदा विद्यमान रहते हैं और समय-समय पर स्मृति एवं कल्पना की सहायता से पुनः हमारे चेतन स्तर पर उदित होकर हमें भाँति-भाँति के बोध प्रदान करते हैं। कवि या कलाकार इन्हीं बिम्बों को अपनी रचना में प्रस्तुत करता है, जिन्हें ग्रहण करते हुए पाठक या दर्शक सामाजिक विषय का बोध प्राप्त करते हैं।  

    दूसरे शब्दों में बिम्ब ऐंद्रिय अनुभूति (पाँच ज्ञानेंद्रिओं अर्थात् - आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा के माध्यम से ग्रहण की गई अनुभूति) का प्रतिबिंब है, जो कि मन में अंकित हो जाता है।

    बिम्ब की परिभाषा

    साहित्यिक दृष्टि से बिम्ब की अनेक परिभाषाएँ की गयी है। सी० डी० लेविस महोदय ने बिम्ब के स्वरूप का सांगोपांग विवेचन करते हुए कहा है—काव्यात्मक विम्ब शब्दों के माध्यम से निर्मित एक ऐसा चित्र है, जिसका किसी न किसी प्रकार के ऐन्द्रिक गुण से सम्पर्क हो।”

    इसी प्रकार डॉ० नगेन्द्र के मत से काव्य-बिम्ब शब्दार्थ के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानस-छवि है, जिसके मूल में भाव की प्रेरणा रहती है।’

    काव्य-बिम्ब के पाँच लक्षण

    काव्य-बिम्ब या काव्यगत बिम्ब के स्वरूप के सम्यक् बोध के लिए उसके पाँच लक्षणों पर भी विचार किया जा सकता है।

    1.   चित्रात्मकता -  इससे आशय यह है कि जिस प्रकार चित्र में वस्तु का प्रतिबिम्ब होता है, उसी प्रकार बिम्ब में भी ऐसा प्रतिबिम्ब होता है जो पाठक के मन में उस वस्तु की अनुभूति जगा सके।

    2.    शब्दरूपात्मकता -  काव्य में बिम्ब चित्र की भाँति रेखाओं में नहीं, अपितु शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत होता है।

    3.   ऐन्द्रिकता – इसका अर्थ है कि वह चित्र केवल स्थूल वस्तु का ही प्रतिबिम्ब न हो, अपितु उसका सम्बन्ध ऐन्द्रियबोध से भी होना चाहिए या यों कहिए कि उसमें हमारी इन्द्रियों को गुदगुदा देने की क्षमता होनी चाहिए।

    4.    भावोत्पादकता - इसका अर्थ है कि काव्य-बिम्ब में भावोत्पादन की क्षमता का होना अनिवार्य है ।

    5.   उसमें आरोपण का अभाव होना चाहिए - इसका अर्थ है कि वह अलंकारों की भाँति मूल वस्तु पर ऊपर से या बाहर से आरोपित नहीं होना चाहिए, उसका वस्तु से सीधा सम्बन्ध होना चाहिए, अन्यथा बिम्ब और अलंकार में कोई अन्तर नहीं रह जायेगा।

    काव्य-बिम्ब की विशेषताएँ

    काव्य बिम्ब के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए विद्वानों द्वारा अनेकानेक परिभाषाएँ दी गई हैं जिनसे काव्य-बिम्ब की निम्न विशेषताएँ उजागर होती हैं:

    1. बिम्ब शब्दों के माध्यम से व्यक्त एक भाव चित्र है। अतः इसमें चित्रात्मकता का अनिवार्य गुण निहित रहता है।

    2. बिम्ब में भाव या संवेग की अनुप्रेरणा रहती है। इस रूप में बिम्ब एक ऐसा शब्द चित्र है जो ऐन्द्रिय संवेदना को जागृत करता है।

    3. बिम्ब का उद्देश्य चित्रण-शक्ति द्वारा पाठक या श्रोता के कल्पना अथवा भाव-संसार में भावोत्पादन एवं भावोद्वेलन करना है।

    4. बिम्ब का निर्माण कल्पना से होता है। कवि की भावानुभूति से अतीतानुभव या स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं और स्मृति कल्पना से जुड़ी होती है। अतः बिम्ब निर्माण की प्रक्रिया में कल्पना के साथ-साथ स्मृति आवश्यक उपकरण बनकर उपस्थित रहती है।

    5. बिम्ब अमूर्त भावों एवं विचारों को मूर्तरूप प्रदान करता है।

    6. बिम्बों में भावों के आंतरिक सौंदर्य की साम्यता के आधार पर अभिव्यक्ति होती है। इसलिए साम्य सौंदर्य बिम्ब की मूलभूत विशेषता है।

    7. कतिपय विद्वानों ने बिम्ब को एक अलंकरण के रूप में भी स्वीकार किया है जो भाषा के शाब्दिक प्रयोग से भिन्न एक आलंकारिक प्रयोग है। किन्तु बिम्ब अलंकार की भांति काव्य की बाह्य साज-सज्जा का उपकरण मात्र ही नहीं बल्कि काव्यानुभूति से उसके गहन संबंध को भी नकारा नहीं जा सकता।

    बिम्ब के मूलभूत तत्व

     बिम्ब के तीन मूलभूत तत्व हैं— (1) कल्पना, (2) भाव, (3) ऐन्द्रिकता।
         कोई भी बिम्ब जब निम्न गुणों से युक्त होता है, तभी काव्य के लिए उपयोगी बन पाता है । बिम्ब के ये गुण हैं:
    • 1. भावनाओं को उत्तेजित करने की शक्ति एवं सामर्थ्य।
    • 2. नवीनता एवं ताजगी।
    • 3. औचित्य अर्थात् प्रसंग के प्रति अनुकूलता एवं सार्थकता।
    • 4. सजीवता अर्थात् बिम्ब इतना स्पष्ट होना चाहिए कि पाठक/श्रोता तुरन्त ऐन्द्रिक साक्षात्कार कर सके।


    बिम्बों के भेद

    बिम्बों के अनेक भेद विद्वानों ने विभिन्न आधारों पर किए हैं, जिनमें से प्रमुख हैं :

    • (1) ऐन्द्रिक बिम्ब- इसके अन्तर्गत निम्न भेद आते हैं: (अ) चाक्षुष बिम्ब, (ब) श्रव्य या नादात्मक बिम्ब, (स) स्पर्श्य बिम्ब, (द) घ्रातव्य बिम्ब, (य) आस्वाद्य बिम्ब ।
    • (2) काल्पनिक बिम्ब -(अ) स्मृति बिम्ब, (ब) कल्पित बिम्ब |
    • (3) प्रेरक अनुभूति के आधार पर - (अ) सरल बिम्ब, (ब) मिश्रित बिम्ब, (स) तात्कालिक बिम्ब, (द) संकुल बिम्ब, (य) भावातीत बिम्ब, (र) विकीर्ण बिम्ब ।

    बिम्ब के कुछ उदाहरण

    1. चाक्षुष बिम्ब : चाक्षुष बिम्बों का संबंध नेत्रों से है। सजीव चित्रात्मक वर्णन इन बिम्बों की विशेषता है।    निम्न काव्य पक्तियों में सुमित्रानन्दन पंत ने संवेदनयुक्त हृदय से भारत के ग्रामीण बच्चों का साकार चित्र (दृश्य या चाक्षुष बिम्ब) प्रस्तुत किया है।

    मिट्टी से भी मटमैले तन,
    अधफटे, कुचैले, जीर्णवसन,
    ज्यों मिट्टी के हों बने हुए
    ये गवई लड़के-भू के धन।
    कोई खंडित, कोई कुंठित,
    कृश बाहू, पसलियाँ रेखांकित
    टहनी सी टांगे, बढ़ा पेट,
    टेढ़े-मेढ़े विकलांग घृणित॥
     
    2. श्रव्य बिम्ब : श्रव्य बिम्ब या नादात्मक बिम्ब का संबंध कर्णेन्द्रिय (कान) से है। ध्वनि, स्तर, लय, नाद, तान आदि कर्ण प्रिय ध्वन्यात्मक संगति से श्रव्य विम्ब का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। वर्षाकालीन निम्न वर्णन प्रसंग में श्रव्य बिम्ब की सृष्टि की गई है:

    झम झम झम झम, मेघ बरसते हैं सावन के
    छम छम छम, गिरती बूंदें तरूओं से छन के,
    दादुर टर टर करते, झिल्ली बजती झन झन
    म्याऊँ म्याऊँ रे मोर, पिउ पिउ चातक के गन।

         स्पष्ट है कि श्रव्य बिम्ब ध्वनिमूलक होते हैं जिसमें शब्दों की ध्वन्यात्मकता बिम्ब प्रभाव उत्पन्न करती है। इसी प्रकार स्पर्शिक संवेदानात्मक चित्रों से स्पृश्य बिम्ब, रसन- संवेदन से आस्वाद्य तथा घ्राण संवेदन से घ्रात्वय बिम्बों की कल्पना की जाती है।

    निष्कर्ष 

    कविता के लिए चित्र भाषा की आवश्यकता को पन्त जी ने पल्लव की भूमिका में स्वीकार किया है। यह चित्र भाषा 'बिम्ब' विधान से ही सम्भव हो पाती है। काव्य भाषा के लिए बिम्ब अपरिहार्य है। ये भावानुभूतियों को चाक्षुष रूप प्रदान करते हैं तथा काव्य में आकर्षण उत्पन्न करते हैं। बिम्ब द्वारा सृजित चित्र केवल रूक्ष शब्द चित्र ही न हों अपितु इन शब्द चित्रों में भावों और अनुभूतियों को उद्वेलित करने की शक्ति भी होनी चाहिए, तभी 'बिम्ब' को सार्थक कहा जा सकता है।

    काव्यात्मक बिम्ब निर्माण में भावानुभूति कवि की सृजनात्मक कल्पना, स्मृतिजन्य ऐन्द्रिय अनुभवों का संयोग होता है। और कवि की सामर्थ्य के अनुसार चित्रमयी सार्थक भाषा बिम्ब को अस्तित्व में लाती है।



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